Monday, January 24, 2011

rajiv... third eye: भारत या india........?

rajiv... third eye: भारत या india........?: "भारत या इंडिया...... जीवन के साढ़े तीन दशक पूरे करने के दौरान मैं एक प्रशन&nbs..."

आने वाला वक़्त बोलेगा

आने वाला वक़्त बोलेगा
दलित की बेटी को सत्ता मिली और उसका दिमाग सातवे आसमान पर जा बैठा है ! सब कहे जा रहे है , बोल रहे हैकी माया अपनी और अपने सियासी गुरु की मूरत पर बेहिसाब दौलत लुटा रही है ! खूबसूरत पार्क बनवा रही हैआदमकद नहीं दानवाकार मूर्तियाँ लगवा रही है '' माना की ये इलज़ाम मौजूदा वक़्त में सही लगते हों ,लेकिनआने वाले वक़्त में जब मायावती नश्वर देह को त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो जाएगी और काल का घूमतापहिया इस समय को इतिहास में बदल देगा तब आने वाली हमारी नस्लें मायावती को वैसे ही याद करेंगी जैसेमुहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल ,लालकिला ,उसका दीवाने -आमऔर दीवाने -खास , को निहार कर शाहजहां को,बादशाह अकबर की जीत की निशानी फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाज़े को देख कर शहंशाह अकबरको याद किया जाता है। ज़रा सोचिये अगर चोल ,चालुक्य और दुसरे राजा रजवाड़े जिन्होंने भी हिंदुस्तान की सल्तनत पर राज़ किया और हिन्दुस्तान की जमीं पर बेमिशाल मंदिर, मस्जिद बड़े-बड़े गुरूद्वारे,गिरजाघर शानदार महल और इमारतें वास्तुकला के नमूने अपनी निशानियों के तौर पर छोड़ दी, ताकि आने वाले वक़्त में बेशक वे सदेह न भी रहें तो भी उनकी पहचान का कोई दस्तख्क्त मौजूद रहे।
हो सकता है की माया की मंशा भी पार्क बनवाने के पीछे भी यही हो , लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की आने वाले समय में दुनिया जहां के लिए मायावती के पार्क वैसे ही आकर्षण का केंद्र बनेगे जैसे हिन्दुस्तान की सरजमी पर ताजमहल है , कुतुबमीनार है,या फिर दूसरी इमारते।
जिन इमारतों को हम आज पर्यटन की नज़र से देखते हैं उससे आय की उम्मीद लगाते हैं , आने वाले वक़्त में भी ऐसा ही होगा, दुनिया-जहां के लोग पैसा खर्च करके भारत में जब भी आएँगे माया की मूरत को भी देखेंगे, तब माया की माया को भी वही दर्ज़ा मिलेगा जो
शाहजहां के ताजमहल,या फिरदूसरी इमारतों को मिल रहा है।
इतिहास के पन्नों पैर नज़र दौड़ाई जाये तो पता चलता है उस वक़्त भी अवामकी नज़रों में इमारतों पर बेहिसाब पैसा लगाना फ़िज़ूल खर्च था,बस हंटर वालोंकी हुकूमत थी लिहाज़ा प्रजा की आवाज़ हलक से बाहर नहीं निकलती थी।आज लोकतंत्र है इसलिए माया का खर्च फ़िज़ूल लग रहा है, ऐसा नहीं की उसदौर में गरीब-गुरबे ना रहें हों।
वरना सोचिए ताजमहल मुमताज़ की याद में उसका मकबरा है,अजंता कीगुफाएं काम-कला के मंदिर है , देश की किसी भी भव्य इमारत से गरीबों काक्या वास्ता , सिर्फ इस बात के की जब इमारत बनती है तब मजदूरी करकेउसका चूल्हा जलता है और जब आलीशान इमारत बन जाती है तो उसे देखनेआने वालों से कई बेरोजगारों को रोज़गार मिल जाता है


पंडित
चंदर बल्लभ '' फोंदनी''